उन्नीस सितंबर, दो हज़ार पच्चीस… वो दिन जिसे असम कभी नहीं भूल सकता।
ज़ुबिन गर्ग नहीं रहे। उनकी अचानक और दुखद मौत ने पूरे राज्य को झकझोर दिया। एक महीना बीत गया है, लेकिन आज भी असम का दिल उसी दर्द और सवाल में अटका है — क्या यह सच में एक हादसा था, या इसके पीछे कोई छुपा सच है? जिनके गाने लोगों की धड़कन थे, उनकी आवाज़ पूरे राज्य की आत्मा बन गई थी। आज वही लोग #JusticeForZubeenGarg लिख रहे हैं। यह सिर्फ़ एक ट्रेंड नहीं, बल्कि इंसाफ़ की पुकार है।

अगर उन्हें पहले से स्वास्थ्य संबंधी दिक्कत थी, तो उन्हें तैरने की इजाज़त किसने दी? सिंगापुर ट्रिप में सुरक्षा इंतज़ाम क्यों नहीं थे? जनता और फैंस के दबाव पर दूसरा पोस्टमॉर्टम भी कराया गया। कई FIR दर्ज हुई, कुछ लोगों को गिरफ़्तार भी किया गया। लेकिन सवाल अभी भी वही हैं — असली गुनहगार कौन है? क्या जिम्मेदार अब भी आज़ाद हैं?
ज़ुबिन गर्ग की पत्नी गरिमा सैकिया गर्ग और बहन पाल्मी बोरठाकुर रोज़ सोशल मीडिया पर यही अपील कर रही हैं — “#JusticeForZubeenGarg लगाते रहो, जब तक सच सामने न आए।” और उनके साथ आज पूरा असम खड़ा है। ज़ुबिन के बिना असम का संगीत जैसे थम गया है। त्योहार और सांस्कृतिक कार्यक्रम उदासी से भर गए हैं। हर मंच, हर गीत अधूरा लगता है। जनता सवाल कर रही है — आखिर कब मिलेगा ज़ुबिन को इंसाफ़? कब टूटेगी यह चुप्पी? कब सामने आएगा सच?
एक महीना बीत गया है, पर असम के दिल में ज़ुबिन की धुन अब भी गूंज रही है। ज़ुबिन अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज, उनकी याद और उनका सवाल आज भी जिंदा हैं।क्योंकि असम जानता है — ज़ुबिन सिर्फ़ एक कलाकार नहीं थे, वह उस मिट्टी की आत्मा थे। और आत्मा को कोई खामोश नहीं कर सकता।