देशभर में दीवाली की रौशनी छाई हुई है, लेकिन असम में इस बार का त्योहार कुछ अलग है। यहाँ के लोगों के चेहरों पर मुस्कान नहीं, बल्कि ग़म की परछाई है। वजह है — राज्य के प्यारे गायक ज़ुबिन गर्ग की मौत। ज़ुबिन के जाने का दर्द अब भी लोगों के दिलों में ज़िंदा है। बरपेटा से लेकर गुवाहाटी तक, हर जगह इस बार दीवाली शांत और सादगी से मनाई जा रही है। पटाखों के बाज़ार खाली हैं, और कारीगरों के दिल भारी।

कैसे ज़ुबिन की याद ने इस बार असम की दीवाली को बदल दिया?
दीवाली का त्योहार है, रोशनी का त्योहार, खुशियों का दिन। लेकिन असम में आज का माहौल कुछ अलग है। हर साल की तरह रौनक नहीं है, मुस्कानें नहीं हैं, और वो उत्साह… जैसे कहीं खो गया है। दीयों की चमक तो है, पर दिलों में अब भी ग़म की परछाई है।
ज़ुबिन गर्ग की मौत का दर्द अब भी असम के लोगों के दिलों में जिंदा है। वो सिर्फ़ एक गायक नहीं थे, बल्कि असम की आत्मा थे, जिनकी आवाज़ ने हर दिल को छुआ था। उनके जाने के बाद से लोग जैसे अंदर से टूट गए हैं। इस बार दीवाली मनाई तो जा रही है, लेकिन मन में खुशी नहीं है। लोग अपने कामों में लगे हैं, पर चेहरे पर शांति नहीं, बस खामोशी है।
बरपेटा, जो अपने पटाखों के लिए मशहूर है, वहाँ भी इस बार सन्नाटा है। हर साल यहाँ के कारीगर महीनों पहले से तैयारी करते हैं, रंग-बिरंगे पटाखे बनाते हैं, ताकि दीवाली के दिन आसमान रोशनी से भर जाए। लेकिन इस बार कुछ भी पहले जैसा नहीं है। बाज़ार में ग्राहक कम हैं, दुकानें खाली हैं और बिक्री लगभग ठप हो गई है।

कारीगरों ने इस साल भी पूरे दिल से पटाखे बनाए, लेकिन उन्हें पता था कि माहौल वैसा नहीं रहेगा। कई परिवारों ने महीनों की मेहनत लगाई, पर अब नुकसान झेल रहे हैं। फिर भी किसी के दिल में शिकायत नहीं है। किसी के चेहरे पर गुस्सा नहीं है। क्योंकि सबके मन में एक ही भावना है — ज़ुबिन गर्ग के लिए सम्मान और श्रद्धा।
लोग कहते हैं — “हमें बस ज़ुबिन के लिए इंसाफ़ चाहिए… पैसा नहीं।” यही बात बरपेटा के हर घर में गूंज रही है।
कारीगरों ने घाटे के बावजूद अपनी परंपरा नहीं छोड़ी। उन्होंने पटाखे जलाए, लेकिन हर धमाके में दर्द की आवाज़ थी। दीवाली की रात आसमान चमका, पर ये रोशनी सिर्फ़ त्योहार की नहीं थी… ये रोशनी थी ज़ुबिन गर्ग की याद की।