बांग्लादेश में हिंसक प्रदर्शन और सियासी उथल-पुथल पर पूरी दुनिया की निगाहें हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं है। लगातार पड़ोसी राष्ट्र में मचे घमासान पर बारीकी से नजर रखी जा रही। बांग्लादेश में जिस तरह का घटनाक्रम हुआ उसने केंद्र की मोदी सरकार की टेंशन को बढ़ा रखा है। इसकी कई वजहें मानी जा रही। बांग्लादेश बॉर्डर से घुसपैठ का मुद्दा बेहद अहम माना जा रहा। यही नहीं पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवादी गतिविधियों को लेकर भी चिंता बढ़ गई है। ऐसा इसलिए क्योंकि खुफिया एजेंसियों का कहना है कि बांग्लादेश में अशांति का फायदा उठाकर उग्रवादी संगठन फिर से वहां पनाह ले सकते हैं। ऐसे में पूर्वोत्तर राज्यों में शांति व्यवस्था पर असर पड़ सकता है।
इस बीच, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने खुलकर अपनी चिंता जताई है। उन्होंने कहा, ‘बांग्लादेश में अस्थिरता से हमारे उग्रवादी संगठनों के लिए एक बार फिर से पनाहगाह बन सकती है। पड़ोसी मुल्क में हो रही घटनाएं हमारे लिए दोहरी चिंता की बात हैं। अगर बांग्लादेश में ये अशांति जारी रही, तो लोग भारत में घुसने की कोशिश करेंगे। हमें बॉर्डर को और भी सुरक्षित करना होगा!'”
शेख हसीना सरकार ने पूर्वोत्तर के उग्रवादी संगठनों के खिलाफ सख्त कदम उठाए थे। उनके कार्यकाल में उल्फा (ULFA) के कई शीर्ष नेताओं को बांग्लादेश में गिरफ्तार किया गया और भारत सरकार के साथ शांति वार्ता में शामिल होने के लिए मजबूर किया गया। उल्फा के महासचिव अनूप चेतिया को नवंबर 2015 में बांग्लादेश से भारत प्रत्यर्पित किया गया था, और बाद में वो भी शांति प्रक्रिया में शामिल हो गए थे।
पूर्वोत्तर राज्य बांग्लादेश, चीन, म्यांमार और भूटान के साथ 4500 किलोमीटर से अधिक लंबी सीमा साझा करते हैं। भारत और बांग्लादेश के बीच 4,096 किलोमीटर लंबा बॉर्डर है, जिसमें से 262 किलोमीटर असम से होकर गुजरता है। शेख हसीना सरकार के कड़े एक्शन ने पूर्वोत्तर के उग्रवादियों को बांग्लादेश से बाहर कर दिया था, लेकिन अब, अगर बांग्लादेश में अशांति बढ़ती है, तो ये उग्रवादी फिर से वहां पनाहगाह बना सकते हैं।
सूत्रों के अनुसार, बांग्लादेश से खदेड़े जाने के बाद, उग्रवादी संगठनों ने म्यांमार में ठिकाने बना लिए थे। अब अगर बांग्लादेश में उथल-पुथल बढ़ती है, तो इन संगठनों के लिए फिर से सुरक्षित ठिकाने बनने का खतरा है, जो भारत की सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती हो सकती है!