असम में भारत रत्न डॉ. भूपेन हज़ारिका की जन्मशताब्दी समारोह की शुरुआत पूरे सम्मान और गर्व के साथ की गई। आठ सितम्बर को गुवाहाटी के डॉ. भूपेन हज़ारिका समन्वय क्षेत्र में राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य और मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पहुँचे और उन्होंने महान गायक, कवि और संगीतकार को श्रद्धांजलि दी। यह वही स्थान है जहाँ साल 2011 में भूपेन दा का अंतिम संस्कार हुआ था। यहाँ राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने उनके स्मारक पर फूल चढ़ाए और उनके नाम से जुड़ा झंडा फहराया गया। इस मौके पर सौ प्रमुख हस्तियों ने भी झंडा फहराया और भूपेन दा के गीतों को समर्पित एक सुंदर संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया।
इस समारोह में भूपेन हज़ारिका के बेटे तेज हज़ारिका भी शामिल हुए। वे अपनी पत्नी और बेटे के साथ अमेरिका से असम आए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी तेरह सितम्बर को असम की यात्रा करेंगे और इस समारोह में भाग लेंगे। इसी दिन रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा एक स्मारक सिक्का जारी किया जाएगा और हज़ारिका के जीवन पर असम पब्लिकेशन बोर्ड द्वारा तैयार एक विशेष पुस्तक का अनावरण किया जाएगा। इस पुस्तक का अनुवाद कई भाषाओं में करने की योजना भी बनाई जा रही है।इससे साफ है कि यह आयोजन सिर्फ असम के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए खास महत्व रखता है।
असम के अलग-अलग जिलों में भी जन्मशताब्दी को लेकर बड़े-बड़े कार्यक्रम हो रहे हैं। नगांव में दस सितम्बर को पंद्रह हज़ार छात्र-छात्राएँ एक साथ भूपेन दा का अमर गीत “मनुहे मनुहोर बाबे” गाएँगे। । इस कार्यक्रम को इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज भी किया जाएगा।
भूपेन हज़ारिका को लोग प्यार से “सुधाकंठ” और “ब्रह्मपुत्र का गायक” कहते हैं। उनका जन्म आठ सितम्बर 1926 को तिनसुकिया ज़िले के सादिया में हुआ था। बचपन से ही उन्होंने असम की लोक परंपराओं और गीतों को करीब से महसूस किया। यही वजह थी कि उनके गीतों में हमेशा मिट्टी की खुशबू और इंसानियत का भाव झलकता रहा। उन्होंने अपने संगीत से भाषा, जाति और धर्म की सीमाएँ तोड़ीं और लोगों को एकजुट करने का काम किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनकी 99वीं जयंती पर उन्हें याद करते हुए कहा कि भूपेन दा भारत की सबसे असाधारण आवाज़ों में से एक थे। उन्होंने न सिर्फ असम बल्कि पूरे भारत की संस्कृति को नई पहचान दी। जन्मशताब्दी का यह साल हमें उनके गीतों, उनके विचारों और उनकी विरासत को फिर से याद करने का मौका देता है। भूपेन दा भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका संगीत और उनका संदेश हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेगा।