असम इस वक्त दो भावनाओं के बीच जी रहा है — एक तरफ ज़ुबिन गर्ग के निधन का गहरा शोक, और दूसरी तरफ राजनीति की हलचल जो धीरे-धीरे फिर से लौट रही है। पूरे राज्य में माहौल अभी भी भारी है, लेकिन आने वाले 2026 विधानसभा चुनावों को लेकर चर्चाएं भी तेज़ हो गई हैं। क्योंकि 2026 विधानसभा चुनाव करीब आते दिख रहे हैं, संभावना है कि मतदान अप्रैल-मई 2026 के आसपास होगा — इसलिए राजनीतिक बातचीत तेज़ हो चुकी है। चाय की दुकानों से लेकर दफ्तरों और बाज़ारों तक, हर जगह लोग कह रहे हैं – “इस बार लड़ाई कड़ी होगी।”

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, जो पिछले पाँच सालों से राज्य की कमान मज़बूती से संभाल रहे हैं, अब पहले की तरह आसान राह पर नहीं हैं। 2021 में बीजेपी ने भारी जीत दर्ज की थी, और सरमा की छवि एक “डायनेमिक” और फैसले लेने वाले नेता की बनी थी। लेकिन अब, लोगों के बीच भरोसे की वह चमक कुछ फीकी पड़ती दिख रही है।
महंगाई, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और नेताओं की दूरी जैसी बातें अब खुलकर सामने आने लगी हैं। कई लोग यह भी कह रहे हैं कि उनके अपने विधायक अब पहले जैसे नहीं रहे — घमंड और उदासीनता दिखाने लगे हैं। वहीं, कई बीजेपी नेता पार्टी छोड़ भी चुके हैं।
इस सबके बीच, ज़ुबिन दा की मौत ने जनता के दिलों को हिला दिया है। हर जगह सिर्फ एक ही आवाज़ सुनाई दे रही है — #JusticeForZubeenDa। मुख्यमंत्री का बयान कि “अगर न्याय नहीं मिला तो बीजेपी को वोट मत देना,” जनता के दिल तक पहुंच गया है। लोग अब सरकार की हर हरकत पर नज़र रखे हुए हैं।
विकास योजनाओं और बड़े-बड़े एलानों के बीच अब लोगों की आवाज़ में शिकायतें सुनाई देने लगी हैं — महंगाई बढ़ी है, नौकरियों की कमी है, भ्रष्टाचार फैला है और नेता जनता से दूर हो गए हैं। कई लोग कहते हैं कि नाराज़गी मुख्यमंत्री से नहीं, बल्कि अपने-अपने विधायकों से है जो अब घमंडी औरनिष्क्रिय
” हो गए हैं। इसके अलावा कुछ बीजेपी नेताओं के पार्टी छोड़ने से भी असम की राजनीति में अनिश्चितता बढ़ी है।
इस सबके बीच, ज़ुबिन गर्ग की मौत ने राज्य की राजनीति को पूरी तरह झकझोर दिया है। हर तरफ एक ही आवाज़ है — #JusticeForZubeenDa! लोग सड़कों पर हैं, सोशल मीडिया पर हैं, और घरों में भी यही चर्चा है।
मुकाबला बेहद करीबी है, एक पतली लाइन का फर्क जो किसी भी वक्त टूट सकता है। मुख्यमंत्री को अब भी मिडिल एज और बुज़ुर्ग वोटरों का सपोर्ट है, लेकिन गौरव गोगोई युवाओं और महिलाओं के बीच अपनी जगह बना रहे हैं। युवा वर्ग का सबसे बड़ा मुद्दा बेरोज़गारी है। सरकार कहती है कि नए प्रोजेक्ट आ रहे हैं, लेकिन युवा कहते हैं कि इनसे मौके अब तक उनके तक नहीं पहुंचे।
BTC चुनावों के नतीजों ने भी बड़ा संदेश दिया है। हग्रामा मोहिलारी की पार्टी बीपीएफ ने ज़बरदस्त वापसी करते हुए 28 में से 28 सीटें जीतीं, जबकि बीजेपी को सिर्फ 5 सीटें मिलीं। यह नतीजा साफ बताता है कि असम की राजनीति में स्थानीय पहचान और अस्मिता अब भी उतनी ही मज़बूत हैं। हालांकि बीजेपी ने हाल के पंचायत चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया है, खासकर ग्रामीण इलाकों में और यहां तक कि मुस्लिम-बहुल जिलों में भी, जिससे यह पता चलता है कि पार्टी का ग्राउंड नेटवर्क अब भी मज़बूत है।
2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों ने 14 में से 11 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस तीन पर सिमट गई थी। लेकिन वोट शेयर के मामले में दोनों पार्टियां लगभग बराबर रहीं, दोनों के पास करीब 37 प्रतिशत वोट थे। यह दिखाता है कि अब मैदान बराबरी का है, और एक छोटी सी लहर पूरे चुनावी परिणाम को पलट सकती है।
आने वाला 2026 का चुनाव अब सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं रहेगा, बल्कि भावनाओं और भरोसे का इम्तिहान होगा। बीजेपी जनता से कहेगी कि “डबल इंजन सरकार” के साथ बने रहो, विकास और स्थिरता के लिए यही बेहतर रास्ता है। वहीं कांग्रेस लोगों से बदलाव की अपील करेगी, । लेकिन सच्चाई यह है कि ज़ुबिन गर्ग की मौत की जांच, युवाओं की उम्मीदें और जनता की भावनाएं ही तय करेंगी कि अगली बार Dispur की कुर्सी किसे मिलेगी।
असम का माहौल इस वक्त बेहद नाज़ुक है। एक बयान, एक गलत कदम या एक जांच में देरी — और जनता का मूड बदल सकता है। इस बार लोग सिर्फ वोट नहीं डालेंगे, बल्कि हिसाब भी लेंगे। असम का आने वाला चुनाव अब सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि भरोसे और न्याय की लड़ाई बन चुका है।
अंत में आपसे सीधी सी बात — आप किसे वोट देंगे? ठंडा दिमाग और गर्म दिल दोनों रखकर सोचिए। सिर्फ नाम या फैशन से वोट न दें — ज़ुबिन दा को मिला इंसाफ, रोज़गार-समस्याओं का हल, भ्रष्टाचार पर सख्ती और आपके इलाके के काम करने वाले नेता — इन सब बातों को ध्यान में रखकर वोट डालें। एक वोट से फर्क पड़ता है, इसलिए सोच-समझकर, ज़िम्मेदारी से और दिल से वोट करें — कल वही फैसला आप और आपके बच्चों की ज़िंदगी पर असर डालेगा।