असम विधानसभा में मुस्लिम विवाह और तलाक के रजिस्ट्रेशन के लिए एक नया बिल पारित किया गया है, जिसका मकसद बाल विवाह और बहुविवाह को रोकना और वैवाहिक संस्थाओं को मजबूत करना है।
असम विधानसभा में प्रस्तुत मुस्लिम मैरिज एंड डिवोर्स रजिस्ट्रेशन बिल 2024 पर हंगामा मच गया है। विपक्ष ने इसे जल्दबाजी में लाया गया बिल बताया है। इस बिल के अनुसार, असम में सभी मुस्लिम विवाह और तलाक का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा। इसका मतलब है कि किसी भी मुस्लिम जोड़े को निकाह के बाद या तलाक लेने से पहले रजिस्ट्रार ऑफिस में रजिस्ट्रेशन कराना होगा।
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इस बिल में दो महत्वपूर्ण प्रावधान किए हैं:
• पहला, मुस्लिम विवाह का रजिस्ट्रेशन अब काजी नहीं, बल्कि सरकार करेगी।
• दूसरा, बाल विवाह का रजिस्ट्रेशन अवैध माना जाएगा।
पहले मुस्लिम समाज निकाह और तलाक के लिए स्वेच्छा से रजिस्ट्रेशन कराते थे, जिसे काजी करते थे। अब यह कानून 1935 के मुस्लिम विवाह और तलाक अधिनियम की जगह लेगा, जिसे मार्च में एक अध्यादेश द्वारा निरस्त कर दिया गया था।
सीएम हिमंत बिस्वा ने कहा कि नया कानून सुनिश्चित करेगा कि यदि लड़के की उम्र 21 साल और लड़की की उम्र 18 साल से कम है, तो निकाह का रजिस्ट्रेशन नहीं होगा। इससे बाल विवाह पर लगाम लगेगी।
नया कानून लागू होने पर निकाह और तलाक का रजिस्ट्रेशन कराने के लिए कुछ शर्तें पूरी करनी होंगी : असम
• जोड़ा निकाह के बाद पति-पत्नी के रूप में एक साथ रह रहा हो।
• जोड़े को रजिस्ट्रार के जिले में कम से कम 30 दिन रहना चाहिए।
• लड़के की उम्र कम से कम 21 साल और लड़की की उम्र कम से कम 18 साल होनी चाहिए।
• दोनों पक्षों की अपनी मर्जी से निकाह हुआ हो, कोई जोर-जबरदस्ती न हुई हो।
• निकाह के समय दोनों मानसिक रूप से ठीक हों और किसी बीमारी से पीड़ित न हों।
• दोनों कानूनी बाधाओं से मुक्त होने चाहिए, अर्थात वे एक दूसरे से रिश्ते में नहीं होने चाहिए।
हालांकि, मुस्लिम समाज में निकाह के रीति-रिवाजों और परंपराओं पर कोई पाबंदी नहीं होगी। निकाह का रजिस्ट्रेशन कराने का तरीका बदलेगा, लेकिन रीति-रिवाज वही रहेंगे। असम में अब तक 95 मुस्लिम रजिस्ट्रार थे, जिन्हें नए बिल में हटा दिया गया है। अब रजिस्ट्रेशन संबंधित जिले के विवाह और तलाक रजिस्ट्रार द्वारा किया जाएगा।
क्या आप जानते हैं असम और देश में बाल विवाह की स्थिति क्या है?
भारत में बाल विवाह आज भी एक गंभीर सामाजिक समस्या है। भारत में हर पांच लड़कियों में से एक और हर छह लड़कों में से लगभग एक की शादी अभी भी कानूनी उम्र से पहले हो जाती है। हालांकि, 1993 से 2021 के बीच के आंकड़े दिखाते हैं कि बाल विवाह की दर में कमी आई है।
लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल ने 1993 से 2021 तक पांच बार हुए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों की स्टडी कर एक रिपोर्ट जारी की है। इसके अनुसार, भारत में लड़कियों के बीच बाल विवाह 1993 में 49.4% था, जो 2021 में घटकर 22.3% रह गया। लड़कों के बीच भी बाल विवाह 2006 में 7.1% से घटकर 2021 में 2.2% रह गया।
बाल विवाह में सबसे ज्यादा कमी 2006 से 2016 के बीच हुई। हालांकि, 2016 से 2021 के बीच कुछ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में लड़कियों और लड़कों के बीच बाल विवाह बढ़ गया, भले ही पूरे देश में यह दर कम हुई हो। साल 2021 में 1 करोड़ 34 लाख 64 हजार 450 लड़कियों और 14 लाख 54 हजार 894 लड़कों की कम उम्र में शादी कर दी गई।
बाल विवाह की सबसे ज्यादा समस्या कहां है?
1993 से 2021 के बीच मणिपुर और त्रिपुरा में लड़कियों के बाल विवाह का आंकड़ा बढ़ा है। इसके अलावा, भारत के कई राज्यों में लड़कियों के बाल विवाह की संख्या कम हुई है। भारत में बाल विवाह की समस्या बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा देखी गई है। इन राज्यों में लड़कियों की शादी कम उम्र में होती है। लड़कों में बाल विवाह की समस्या गुजरात, बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा देखी गई है।
असम में बाल विवाह की स्थिति क्या है?
लड़कियों के बाल विवाह के मामलों में असम 11वें नंबर का राज्य है। असम में, बाल विवाह के मामलों में 2021-22 से 2023-24 के बीच 81% की कमी आई है। राज्य के कई गांवों में बाल विवाह समाप्त हो गया है या काफी कम हो गया है।
किस धर्म के लोगों में ज्यादा बाल विवाह होता है?
हिंदू और मुस्लिम परिवारों में अपनी लड़कियों की शादी कम उम्र में कराने में बहुत कम अंतर है। हर तीन विवाहित महिलाओं में से एक ने 18 साल की उम्र से पहले शादी कर ली। आंकड़े बताते हैं कि 31.3% हिंदू लड़कियां और 30.3% मुस्लिम लड़कियां अपनी शादी के समय 18 या उससे कम उम्र की थीं। उनमें से कई ने तो 10 साल भी पूरे नहीं किए थे। कानूनी रूप से शादी की उम्र लड़कियों के लिए 18 और लड़कों के लिए 21 साल है। कानून के तहत निर्धारित उम्र से पहले कोई भी विवाह बाल विवाह माना जाता है। हालांकि, 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार सिख, ईसाई, बौद्ध और जैन लड़कियों की स्थिति बहुत बेहतर थी।
आखिर बाल विवाह समाज के लिए खराब क्यों है?
बाल विवाह से लड़कियों के अधिकारों का हनन होता है, जैसे कि शिक्षा का अधिकार, मानसिक या शारीरिक शोषण से सुरक्षा का अधिकार, बलात्कार और यौन शोषण से सुरक्षा का अधिकार। बाल विवाह से लड़कियों को लड़कों पर निर्भर होना पड़ता है और इससे लैंगिक समानता के विचार पर असर पड़ता है। इतना ही नहीं, बाल विवाह से अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ता है क्योंकि बच्चों की शादी होने से लड़के और लड़कियों को स्कूल नहीं मिल पाता और उन्हें अच्छी नौकरी भी नहीं मिलती।
बाल विवाह समाप्त करने के लिए कई उपाय करने की जरूरत है, जैसे कि शिक्षा बढ़ाना, सार्वजनिक सुविधाएं बढ़ाना, सामाजिक जागरूकता बढ़ाना, असमानता खत्म करना, सख्त कानून बनाना और उनका सख्ती से पालन करना।