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असम सरकार ने नगालैंड सीमा से लगे उरियमघाट के रेंगमा रिजर्व फॉरेस्ट में एक बड़ा अतिक्रमण हटाओ अभियान शुरू किया है। इस अभियान का मकसद करीब 3,600 एकड़ यानी लगभग 11,000 बीघा संरक्षित जंगल की जमीन को कब्जे से मुक्त कराना है। इसे अब तक का सबसे बड़ा एंटी-एन्क्रोचमेंट ऑपरेशन बताया जा रहा है। अधिकारियों के अनुसार, इस कार्रवाई से करीब 1,500 परिवार प्रभावित हो सकते हैं जिन्हें पहले ही बेदखली के नोटिस भेजे जा चुके थे।

इस अभियान की शुरुआत मंगलवार सुबह विद्या पुर के मेन मार्केट से की गई, जहां बड़ी संख्या में पुलिस और फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के कर्मचारी तैनात रहे। धीरे-धीरे यह ऑपरेशन उन रिहायशी इलाकों तक पहुंचाया जा रहा है, जहां 12 गांवों में फैले 2,648 अवैध घरों को गिराने की योजना है।

अभियान को शांतिपूर्ण ढंग से चलाने के लिए 2,000 से ज्यादा असम पुलिसकर्मी और 500 फॉरेस्ट गार्ड्स को लगाया गया है। तोड़फोड़ के लिए 100 से ज्यादा पोकलैंड और खुदाई करने वाली मशीनें तैनात की गई हैं। सुरक्षा के लिए गोलाघाट, मेरापानी, शिवसागर और तिनसुकिया जैसे जिलों से भी फोर्स और इक्विपमेंट मंगवाए गए हैं।

जमीन पर खुद सीनियर ऑफिसर जैसे एएसपी, डीएसपी और असिस्टेंट कमिश्नर मौजूद हैं, ताकि पूरे ऑपरेशन की निगरानी और कोऑर्डिनेशन सही तरीके से हो सके। अधिकारियों ने कहा है कि ये कार्रवाई पूरी तरह कानून के मुताबिक की जा रही है, और इसका मकसद जंगल की जमीन को बचाना और पर्यावरण को सुरक्षित रखना है।

इस बीच, कुछ स्थानीय लोगों का कहना है कि जिनके घर तोड़े जा रहे हैं, उनमें से ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के हैं, जबकि जिन लोगों के पास FRC सर्टिफिकेट हैं, वे मुख्य रूप से बोडो, नेपाली और अन्य आदिवासी समुदायों से आते हैं। हालांकि प्रशासन ने इस पर कुछ नहीं कहा और साफ किया है कि कार्रवाई केवल डॉक्युमेंट्स और कानून के आधार पर की जा रही है।
अधिकारियों ने यह भी बताया कि जिन परिवारों को नोटिस दिए गए थे, उनमें से 80 प्रतिशत ने हाल के दिनों में खुद ही वह इलाका खाली कर दिया है।

राज्य सरकार ने साफ कर दिया है—जंगलों पर अवैध कब्ज़ा अब बर्दाश्त नहीं होगा, चाहे कोई भी हो। लेकिन उरियमघाट में टूटते आशियाने ये भी पूछ रहे हैं—क्या जंगल बचाने की इस मुहिम में इंसानी जिंदगियां कुर्बान होंगी? और क्या इस कार्रवाई के पीछे कोई और रणनीति भी छुपी है? जवाब आने वाले वक्त में सामने आएंगे।

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