भारत में कई ऐसे वीर योद्धा और सिपाही होते हैं, जो आतंकियों के सामने डटकर खड़े होते हैं। उन्हें इसके लिए खास ट्रेनिंग दी जाती है। लेकिन क्या आप सोच सकते हैं कि एक साधारण महिला, बिना किसी सैन्य ट्रेनिंग के, आतंकियों के सामने डट जाए और सैकड़ों लोगों की जान बचा ले? ऐसी ही एक बहादुर महिला थीं नीरजा भनोट। वह कोई सैन्य अधिकारी नहीं थीं, लेकिन उनकी हिम्मत किसी सिपाही से कम नहीं थी।
नीरजा भनोट का जन्म 7 सितंबर 1963 को एक पंजाबी परिवार में हुआ था। उनका बचपन चंडीगढ़ में बीता, जहां उन्होंने सैक्रेड हार्ट सीनियर सेकेंडरी स्कूल से पढ़ाई की। बाद में उनका परिवार मुंबई आ गया, और नीरजा ने सेंट जेवियर कॉलेज से स्नातक की डिग्री पूरी की।
नीरजा शुरू से ही खुले विचारों वाली थीं। वह 17 साल की उम्र में ही स्वतंत्र और बिना किसी रोक-टोक वाली जिंदगी जीना चाहती थीं। उन्हें मॉडलिंग का शौक था, लेकिन 1985 में उनकी शादी एक बिजनेसमैन से करवा दी गई। यह शादी लंबे समय तक नहीं चल सकी, और दो महीने बाद नीरजा अपने पति से अलग हो गईं। इसके बाद उन्होंने मॉडलिंग में कदम रखा और कई विज्ञापनों में काम किया।
नीरजा को हवाई जहाज और उड़ान का शौक बचपन से ही था। अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने पैन एएम एयरलाइंस में बतौर फ्लाइट अटेंडेंट काम करना शुरू किया। इसके लिए उन्होंने फ्लोरिडा और मयामी से ट्रेनिंग ली।
5 सितंबर 1986 को, नीरजा एक फ्लाइट में सीनियर अटेंडेंट के रूप में काम कर रही थीं। यह फ्लाइट मुंबई से अमेरिका जा रही थी, लेकिन कराची में आतंकियों ने इसे हाईजैक कर लिया। आतंकियों ने फ्लाइट में मौजूद यात्रियों को गन प्वाइंट पर ले लिया। उस मुश्किल घड़ी में नीरजा ने अपनी सूझबूझ से फ्लाइट का दरवाजा खोल दिया और यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकालने की कोशिश की। इस दौरान उन्होंने खुद की जान की परवाह नहीं की और 360 लोगों की जान बचाई।
दुर्भाग्य से, 5 सितंबर 1986 को आतंकियों की गोलीबारी में नीरजा भनोट शहीद हो गईं। उन्होंने अपनी जान देकर कई लोगों की जिंदगी बचाई। उनकी बहादुरी और साहस के लिए नीरजा को मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया, और वह यह सम्मान पाने वाली भारत की पहली महिला बनीं। उनके जीवन पर एक फिल्म भी बन चुकी है, जो उनकी प्रेरणादायक कहानी को दर्शाती है।
नीरजा भनोट न केवल एक बहादुर महिला थीं, बल्कि वह हर भारतीय के लिए प्रेरणा हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्ची बहादुरी हमेशा सैन्य ट्रेनिंग से नहीं आती, बल्कि दिल से आती है।