कल महानगर के काहीलिपारा को लेपर्ड बेयरिंग एरिया घोषित कर दिया गया। इससे इलाके में दहशत फैल गई। स्थिति को देखते हुए वन विभाग ने लोगों को आतंकित न होने की अपील की और साथ ही वाहनों को धीमी गति से चलाने को कहा है। यह तो एक खबर थी। ऐसी कई सारी खबरें अखबारों में सुर्खियों का केंद्र रहती है। “सावधान हो जाईए! फला-फला जगह तेंदुआ असर छेत्र घोषित।” या फिर आप कही से जा रहे हो और आप के सामने बड़े अक्षरों मे लिखा हो “एलीफेन्ट कॉरिडर! प्लीज ड्राइव स्लो” आज यह सब तो आम बात है।आजकल इंसानों की बस्ती में बिन बुलाए बेजूबानों की एंट्री होना आम बात हो गई है।
अब मान लीजिए कोई आपसे कहे कि आपको हमेशा के लिए अपना घर खाली करना होगा तो कैसा महसूस करेंगे आप। अब जनाब जरा उन बेजुबान जानवरों के बारे में सोचिए जिनसे विकास व मॉडर्न टेक्नोलॉजी की आड़ में उनका आशियाना छीन लिया गया है। यही नहीं बढ़ती जनसंख्या ने हम इंसानों को इतना मजबूर कर दिया है की हम बेजूबान जानवरों के आशियानों को हड़पने से पीछे नहीं हटते।
कुछ ऐसा ही हाल है गुवाहाटी और उसके अससपास के इलाकों में रहने वाले जंगली जानवरों का जिनके घर को मॉडर्न सोसायटीज की आड़ में नष्ट कर दिया गया है। अब ऐसी बातें कभी भी खबरों का हिस्सा नहीं बनती मगर जब यही जानवर अपना हक मांगने के लिए इंसानों की बस्ती में जाते हैं तब तब यह खबर बन जाती हैं।और अखबारों में सुर्खिया आती है “फला-फला जगह मे तेंदुआ का आतंक…लोग परेशान। फिर इसके बाद वन विभाग व सरकार तरह तरह के पेंट्रे आजमाती है इन जंगली जानवरों से छुटकारा पाने के लिए।
ऐसे में सवाल आपसे है आप बताइए की इन बेजुबान जानवरो ने क्या गलत किया ?क्या गलती हम इंसानों की नही है?क्या हम इन बेजुबानों के लिए कुछ नही कर सकते।कुछ नही तो सब मिलकर एक- एक पेड़ तो लगा ही सकते है जिससे इनहे इनका आशियाना वापिस मिल सके।