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बिहार में इस बार ऐसा राजनीतिक भूकंप आया है, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। एनडीए ने 243 में से 200 से ज्यादा सीटों पर बढ़त और जीत हासिल कर, एक ऐतिहासिक और प्रचंड जीत दर्ज की है। यह नतीजे दिखाते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जमीनी पकड़ अभी भी बेहद मजबूत है। 15 साल बाद एनडीए ने सीटों के हिसाब से डबल सेंचुरी लगाई है, जो किसी भी गठबंधन के लिए एक ऐतिहासिक सफलता है।

बीजेपी इस चुनाव की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। पार्टी ने 101 में से 89 सीटें जीतकर लगभग 90% स्ट्राइक रेट बनाई, जो अपने आप में रिकॉर्ड है। यह साफ दिखाता है कि मोदी फैक्टर बिहार में भी पूरी ताकत से काम करता है। वहीं नीतीश कुमार की जेडीयू ने भी 80 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल कर यह साबित किया कि 20 साल सत्ता में रहने के बावजूद जनता में उनके प्रति भरोसा बना हुआ है। एनडीए की इस बड़ी जीत में महिला मतदाताओं की भूमिका भी बेहद महत्वपूर्ण रही। इस बार महिलाओं का मतदान पुरुषों से लगभग 10 प्रतिशत अधिक रहा और कई रिसर्चस में बताया गया है कि बिहार की महिलाएं एनडीए के प्रति अधिक झुकाव रखती हैं, जो इस नतीजे में भी साफ दिखाई दिया।

सरकारी योजनाओं का असर भी इस चुनाव में गहराई से देखने को मिला। 125 यूनिट मुफ्त बिजली, सामाजिक सुरक्षा पेंशन में बढ़ोतरी और 1 करोड़ से अधिक महिलाओं को 10,000 रुपये की सहायता ने जनता के मन में सरकार के प्रति भरोसा मजबूत किया। महागठबंधन लगातार बीजेपी पर हमले करता रहा, लेकिन “जंगल राज” का मुद्दा इस बार भी तेजस्वी यादव के खिलाफ गया और गठबंधन 35 सीटें भी पार नहीं कर पाया। जबकि सर्वे और ओपिनियन पोल में तेजस्वी को पसंदीदा मुख्यमंत्री बताया जा रहा था, लेकिन नतीजों में यह समर्थन वोटों में बदल नहीं पाया।

इस चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी (रामविलास) भी एक बड़े खिलाड़ी के रूप में सामने आई। उन्होंने सिर्फ 28 उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन 19 सीटें जीतकर शानदार वापसी की। वहीं ओवैसी की एआईएमआईएम ने 5 सीटें, जीतन राम मांझी की हम ने 5 और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी ने 4 सीटें जीतकर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। दूसरी तरफ आरजेडी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा। पार्टी सिर्फ 25 सीटों पर सिमट गई, जो 2010 के बाद इसका दूसरा सबसे कमजोर प्रदर्शन है। कांग्रेस की हालत तो और भी खराब रही और वह 61 सीटों में से सिर्फ 6 ही जीत सकी।

सबसे ज्यादा चर्चा में रही प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी नतीजों में कहीं नहीं दिखी। दो साल की पदयात्रा, बड़े-बड़े दावे और भारी प्रचार के बावजूद PK की पार्टी हर सीट पर पिछड़ गई और अधिकांश जगहों पर जमानत तक जब्त हो गई। प्रशांत किशोर खुद भी चुनाव नहीं लड़े, जिससे पार्टी की दिशा को लेकर भ्रम और बढ़ गया।

बिहार के ये नतीजे केवल राज्य की राजनीति को नहीं, बल्कि देश की राजनीति को भी नया संदेश देते हैं। आने वाले छह महीनों में बंगाल और असम में चुनाव होने हैं, और बिहार का यह परिणाम वहां भी राजनीतिक माहौल को प्रभावित करेगा। बीजेपी लगातार दूसरी बार जेडीयू से बेहतर प्रदर्शन कर रही है, जिसके बाद पार्टी के अंदर अपने मुख्यमंत्री की मांग जोर पकड़ सकती है। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह पहले ही साफ कर चुके हैं कि बिहार में नेतृत्व नीतीश कुमार ही करेंगे।

कुल मिलाकर, जनता ने विकास, स्थिरता और भरोसे पर वोट किया। महिलाओं की भूमिका निर्णायक रही, योजनाओं ने असर दिखाया और महागठबंधन नेतृत्व की कमज़ोरी स्पष्ट रूप से सामने आ गई। इस चुनाव ने तेजस्वी यादव की ‘अगला नेता’ बनने की कोशिशों पर पानी फेर दिया और एनडीए को एक बार फिर बिहार की राजनीति का केंद्र बना दिया। यह नतीजा सिर्फ जीत नहीं, बल्कि बिहार में सत्ता संतुलन के एक नए अध्याय की शुरुआत है।

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