गुवाहाटी का अंबुबाची मेला न सिर्फ असम बल्कि पूरे भारत के लिए एक अद्भुत और आस्था से भरा पर्व है। यह मेला हर साल गुवाहाटी के कामाख्या मंदिर में आयोजित होता है, जो तांत्रिक परंपरा और स्त्री शक्ति की आराधना का केंद्र माना जाता है। वर्ष 2025 में भी यह मेला 23 जून से शुरू हुआ है, और दूसरे दिन नीलांचल पहाड़ियों पर आस्था की बाढ़ सी उमड़ पड़ी।
देवी का मासिक धर्म और मंदिर का तीन दिन का विश्राम
अंबुबाची मेला देवी कामाख्या के मासिक धर्म (menstruation) के पवित्र प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान मंदिर का गर्भगृह तीन दिनों के लिए बंद कर दिया जाता है। यह माना जाता है कि इन दिनों देवी आराम करती हैं, और चौथे दिन विशेष शुद्धिकरण पूजा के बाद मंदिर के द्वार भक्तों के लिए फिर से खोले जाते हैं। इस साल मंदिर 26 जून को खोला जाएगा।
दर्शन नहीं, फिर भी महसूस होती है उपस्थिति
हालांकि मंदिर बंद है, फिर भी हजारों श्रद्धालु मंदिर परिसर और उसके आस-पास की सीढ़ियों व घाटों पर उपवास, मंत्रोच्चारण और साधना में लीन हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि इस समय देवी की उपस्थिति हवा में महसूस की जा सकती है, और उनका आशीर्वाद दूर से भी प्राप्त होता है।
सख्त निगरानी और सेवाएं
भीड़ को संभालने के लिए असम पुलिस, एसडीआरएफ और स्वास्थ्य विभाग की टीमें तैनात की गई हैं। प्रशासन ने मंदिर जाने के समय को सीमित करते हुए सुबह और शाम की पूजा के समय ही प्रवेश की अनुमति दी है।
साधु-संतों की मौजूदगी ने बढ़ाई आध्यात्मिक ऊर्जा
तांत्रिक साधु, अघोरी और संन्यासी देश के कोने-कोने से यहां पहुंचे हैं। उनकी साधना, मौन ध्यान और पारंपरिक अनुष्ठान इस मेले को एक अनोखी आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देते हैं।
बाजारों में रौनक और सुविधाओं की कमी
मंदिर के बाहर लगे अस्थायी बाजारों में रुद्राक्ष, पूजा सामग्री और धार्मिक किताबों की खूब बिक्री हो रही है। वहीं, सरकार और एनजीओ की ओर से तीर्थयात्रियों के लिए टेंट और धर्मशालाओं की व्यवस्था की गई है। लेकिन कुछ श्रद्धालुओं ने डिजिटल पेमेंट की कमी, साफ-सफाई और रहने की व्यवस्था को लेकर शिकायतें भी की हैं।
नारी शक्ति का उत्सव
अंबुबाची सिर्फ एक धार्मिक मेला नहीं है, यह नारी शक्ति, सृजन और प्रकृति के चक्र का उत्सव है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि स्त्री का शरीर और उसका प्राकृतिक चक्र भी उतना ही पूजनीय है जितना कि देवी की मूर्ति।
अंत में, अंबुबाची मेला यह साबित करता है कि आस्था सिर्फ दर्शन से नहीं, भावना और समर्पण से भी जुड़ी होती है। जब गुवाहाटी की पहाड़ियों पर मंत्र गूंजते हैं, तो वहां सिर्फ भक्त नहीं, बल्कि स्वयं देवी शक्ति की उपस्थिति महसूस होती है।