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हर साल जून के तीसरे रविवार को जब दुनिया भर में फादर्स डे मनाया जाता है, तो बहुत से लोग अपने पिता को गले लगाते हैं, उन्हें तोहफे देते हैं और सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं – “मेरे सुपरहीरो, मेरे पापा”। लेकिन इस खास दिन पर कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जिनके दिल में एक खालीपन होता है। वे जो कभी अपने पिता से मिले ही नहीं… या वो जो बचपन में ही अपने पिता को खो चुके हैं।

वो जो साथ नहीं हैं, लेकिन यादों में हैं
पिता का रिश्ता सिर्फ साथ बैठने, डांटने या पैसे देने तक सीमित नहीं होता। पिता वो छाया हैं जो अक्सर हमारी सफलता की बुनियाद बनते हैं। लेकिन सोचिए उन बच्चों के बारे में जिनके सिर से ये छाया बहुत जल्दी हट गई।
उनके लिए फादर्स डे का मतलब है –
• पुराने एलबम में एक धुंधली तस्वीर देखना,
• माँ की आँखों में छुपी हुई उदासी पढ़ना,
• या किसी और के पापा को देखकर चुपचाप मन ही मन एक सवाल करना – “काश मेरे पापा भी होते…”

समाज की अपेक्षाएं और अकेलेपन का बोझ
बहुत बार ऐसे बच्चों से ये पूछा जाता है — “तुम्हारे पापा क्या करते हैं?”
यह एक सामान्य सवाल किसी के लिए भावनात्मक चोट बन जाता है।
जब बच्चे खेलते हुए कहते हैं – “मेरे पापा ने मेरे लिए साइकल लाकर दी!” – तब वो बच्चा जो अपने पापा को खो चुका है, बस मुस्कुरा देता है… ताकि कोई उसकी आंखों में आँसू न देख ले।

माँ बनीं पापा का साया
ऐसे परिवारों में माँ ही दोनों ज़िम्मेदारियाँ उठाती हैं – माँ भी, और पिता भी।
वो बच्चों को ये एहसास नहीं होने देतीं कि उनका जीवन किसी तरह से अधूरा है। लेकिन अंदर ही अंदर एक दर्द हमेशा मौजूद रहता है – पिता के नाम का खाली कोना, जिसे कोई भर नहीं सकता।

फादर्स डे को कैसे देखें ऐसे लोग?

अगर आपके पास पिता नहीं हैं, तो इसका मतलब ये नहीं कि फादर्स डे आपके लिए नहीं है।
ये दिन उन यादों को सम्मान देने का दिन है जो रह गईं, उन अधूरे ख्वाबों को सलाम करने का दिन है जो पापा के साथ जुड़ने थे, और सबसे ज़्यादा – खुद को हिम्मत देने का दिन है कि “मैंने बिना पिता के भी ज़िंदगी का रास्ता तय किया है, और आगे भी करूँगा।”

आज अगर आप इस लेख को पढ़ रहे हैं और आपने अपने पिता को खोया है, तो जान लीजिए –
आप अकेले नहीं हैं।
आपकी आँखों में जो आँसू हैं, वो कमज़ोरी नहीं… वो प्यार है।
आपकी खामोशी, आपकी ताकत है।
और आपके जीवन की हर छोटी-बड़ी कामयाबी में कहीं न कहीं आपके पिता की परछाई जरूर साथ चल रही है।
फादर्स डे सिर्फ मनाने का दिन नहीं है, यह याद करने, महसूस करने और अपने भीतर छिपे दर्द को अपनाने का दिन भी है।
उन सभी को सलाम, जिन्होंने अपने पिता को खोया… और फिर भी जीवन से हार नहीं मानी।

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