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22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पर्यटन स्थल पहलगाम में जो कुछ हुआ, उसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। यह कोई सामान्य आतंकी हमला नहीं था, बल्कि इंसानियत और भरोसे पर सीधा वार था। कुछ आतंकियों ने एक योजनाबद्ध तरीके से 26 मासूम पर्यटकों की बेरहमी से हत्या कर दी। सबसे दिल दहला देने वाली बात यह रही कि हत्या से पहले पीड़ितों से उनका धर्म पूछा गया। उनसे कहा गया – “कलमा पढ़ कर सुनाओ।” जो नहीं पढ़ पाए, उन्हें वहीं गोली मार दी गई। सिर्फ इसलिए क्योंकि वे हिंदू थे।


इस हमले के पीछे जो नाम सामने आए हैं, वे पाकिस्तान की भूमिका को पूरी तरह बेनकाब करते हैं। अब तक पांच आतंकियों की पहचान हो चुकी है, जिनमें तीन पाकिस्तानी – आसिफ फौजी उर्फ मूसा, सुलेमान शाह उर्फ युनुस और अबू तल्हा उर्फ आसिफ – शामिल हैं। इनके साथ दो कश्मीरी – आदिल गुरी और एहसान – भी इस साजिश में शामिल थे, जो 2018 में पाकिस्तान जाकर आतंकी ट्रेनिंग लेकर लौटे थे। इस हमले की जिम्मेदारी ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) ने ली है, जो लश्कर-ए-तैयबा का ही एक प्रॉक्सी संगठन है। यह साफ संकेत है कि हमला सिर्फ स्थानीय स्तर पर नहीं, बल्कि पाकिस्तान से फंड और योजनाबद्ध तरीके से किया गया था।


इस नृशंस हमले का उद्देश्य सिर्फ लोगों की जान लेना नहीं था, बल्कि इसके पीछे कई खतरनाक योजनाएं थीं — कश्मीर की टूरिज्म इंडस्ट्री को बर्बाद करना, स्थानीय लोगों की रोज़ी-रोटी छीनना, ताकि वे आतंकियों के बहकावे में आएं, देश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ाना और भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचाना। जब कश्मीर में पर्यटक नहीं आएंगे, तो हज़ारों लोग बेरोज़गार हो जाएंगे। यही मौका आतंकवादी संगठनों को चाहिए – बेरोजगार युवाओं को बहकाकर आतंक की राह पर ले जाना।
सरकार ने अब इस हमले के बाद सख्त कदम उठाए हैं। आतंकियों के स्केच जारी किए गए हैं और हर एक पर बीस लाख रुपए का इनाम रखा गया है। NIA और IB ने जांच शुरू कर दी है। पहलगाम और आसपास के इलाकों में सर्च ऑपरेशन तेज़ कर दिया गया है। पाकिस्तान से जुड़े सैकड़ों सोशल मीडिया अकाउंट्स और वेबसाइट्स को भारत में ब्लॉक किया जा चुका है।
डिप्लोमैटिक स्तर पर भी भारत ने कड़ा रुख अपनाया है। अटारी-वाघा बॉर्डर को बंद कर दिया गया है, SAARC वीज़ा छूट रद्द कर दी गई है, पाकिस्तानियों को 48 घंटे में देश छोड़ने को कहा गया है, सिंधु जल समझौता निलंबित कर दिया गया है और पाकिस्तान के टॉप डिप्लोमैट साद अहमद वर्रैच को ‘Persona Non Grata’ घोषित कर भारत से निकाल दिया गया है।
यह हमला उस समय हुआ, जब अमेरिका के उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस भारत में मौजूद थे और प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात कर रहे थे। क्या यह हमला भारत की वैश्विक छवि को धूमिल करने और अमेरिका जैसे देशों को भारत की सुरक्षा को लेकर चिंतित करने के लिए समयबद्ध तरीके से किया गया था? यह सवाल अब चर्चा में है।
देश की जनता गुस्से में है। सवाल यह नहीं कि हमला हुआ, सवाल यह है कि इसे रोका क्यों नहीं गया? इंटेलिजेंस कहाँ थी? पर्यटक बिना सुरक्षा के कैसे घूम रहे थे? लोग कह रहे हैं – अब सिर्फ बयान नहीं, बदला चाहिए।
इस हमले का असर सीधा दिखेगा – टूरिज्म रुकेगा, रोज़गार जाएगा, नफरत फैलाने वाले लोग मौके का फायदा उठाएंगे और देश में साम्प्रदायिक तनाव बढ़ेगा। ऐसे समय में पूरे देश को एकजुट होकर जवाब देना होगा। सतर्क रहना होगा। नफरत फैलाने वालों को पहचानना और उनका मुकाबला करना होगा।
यह हमला सिर्फ टूरिस्ट्स पर नहीं था – यह भारत की आत्मा पर हमला था। अब देश पूछ रहा है – क्या हमारा धर्म अब हमारे जीने-मरने की वजह बन गया है? क्या सरकार सिर्फ दुख जताएगी, या अब कोई ठोस कार्रवाई भी होगी?
अब चुप्पी नहीं चलेगी। अब आतंक को जड़ से मिटाना होगा – चाहे वो सरहद पार हो या देश के अंदर छुपा हो।

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