दिल्ली हाई कोर्ट ने साल 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान आपत्तिजनक ट्वीट करने को लेकर बीजेपी नेता और दिल्ली के मौजूदा कानून मंत्री कपिल मिश्रा के खिलाफ निचली अदालत में कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।जस्टिस रवींद्र डुडेजा से सेशन कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली कपिल मिश्रा की याचिका पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया जिसमें मजिस्ट्रेट कोर्ट की ओर से जारी समान के खिलाफ मिश्रा की याचिका को खारिज कर दिया गया था।
क्या हैं पूरा मामला-
दरअसल कपिल मिश्रा ने 23 जनवरी 2020 को दिल्ली विधानसभा चुनाव के संबंध में कथित आपत्तिजनक बयान ट्वीट किया था जिस पर बवाल खड़ा हो गया था। इसको लेकर चुनाव अधिकारी ने उनके खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई थी। इसी शिकायत के आधार पर FIR दर्ज हुई थी। सेशन कोर्ट ने सात मार्च के अपने आदेश में कहा था कि वह मेजिस्ट्रेट कोर्ट के इस फैसले से पूरी तरह सहमत है कि चुनाव अधिकारी की ओर से दायर की गई शिकायत जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 125 के तहत अपराध का संज्ञान लेनेवाले लिए पर्याप्त है। इस धारा में चुनाव के संबंध में वर्गों के बीच शत्रुता को बताया गया है।दिल्ली हाई कोर्ट में मिश्रा की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने दलील देते हुए कहा कि अधिनियम की धारा 125 एक गैर-संज्ञेय अपराध है और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 155 (2) के तहत प्रक्रिया का पालन किए बिना FIR दर्ज नहीं की जा सकती। कथित ट्वीट का उद्देश्य न तो तमाम वर्गों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना था और न ही उस दौरान ऐसी कोई स्थिति पैदा की गई थी। मिश्रा ने चुनाव के दौरान ट्वीट करके उन ‘असामाजिक और राष्ट्रविरोधी’ तत्वों की आलोचना की थी, जो नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ आंदोलन की आड़ में माहौल खराब करना चाहते थे।
अब ऐसे में दिल्ल्ली पुलिस की भी दलीलें सामने आ रही हैं की महेश जेठमलानी ने दलील देते हुए कहा कि ट्वीट में मिश्रा यह कहना चाहते थे कि अगर कोई देश को बांटने की कोशिश करेगा, तो राष्ट्रवादी लोग उसे रोक देंगे। हालांकि दिल्ली पुलिस की ओर से पेश वकील ने याचिका का विरोध किया और कहा कि ट्वीट का मकसद दो धार्मिक समुदायों के बीच नफरत को बढ़ावा देना था। इस मुद्दे पर दो अदालतों के निष्कर्ष एक जैसे हैं और मिश्रा की दलीलों पर आरोप तय करने के दौरान विचार किया जा सकता है। सेशन कोर्ट ने 7 मार्च को मिश्रा की पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी थी और कहा था कि उनका बयान धर्म के आधार पर शत्रुता को बढ़ावा देने का एक प्रयास प्रतीत होता है, जिसमें अप्रत्यक्ष रूप से उस देश का उल्लेख किया गया है, जिसका प्रयोग आम बोलचाल में अक्सर एक विशेष धर्म के सदस्यों को दर्शाने के लिए किया जाता है।