आजकल की दुनिया में ‘हसल कल्चर’ का मतलब है दिन-रात मेहनत करना, चाहे कुछ भी हो जाए। लेकिन इस कल्चर के पीछे छिपा खतरनाक सच बहुत कम लोग समझ पाते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है पुणे की 26 साल की CA एना सेबेस्टियन, जिसने सिर्फ चार महीने पहले Ernst & Young (EY) कंपनी जॉइन की थी। काम के ज्यादा दबाव और तनाव की वजह से उसने अपनी जान खो दी।
एना की फैमिली ने कंपनी को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है। एना की मां ने EY India के हेड को एक चिट्ठी लिखी, जिसमें उन्होंने बताया कि नौकरी शुरू करने के बाद से ही एना बहुत ज्यादा तनाव और चिंता में थी। उसे ठीक से खाने और सोने तक का टाइम नहीं मिल पाता था।
एना को दिन-रात, यहां तक कि वीकेंड्स पर भी काम करने के लिए मजबूर किया गया। जब उसने काम के बोझ के बारे में अपनी बात रखी, तो उसके सीनियर्स ने कहा, “रात में काम कर लो, हम सब ऐसा ही करते हैं।” उसका मैनेजर उसे देर रात तक काम करने को कहता और सुबह तक सबकुछ पूरा करने की उम्मीद रखता था।
लगातार कई रातों तक बिना नींद के काम करने से एना की सेहत बिगड़ने लगी। लेकिन एना ने नौकरी नहीं छोड़ी क्योंकि उसे लगा था कि उसे इस नौकरी से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा और वह खुद को साबित कर सकेगी। उसे नहीं पता था कि ये ‘toxic’ काम का माहौल उसकी जान ले लेगा।
एना की कहानी अकेली नहीं है। WHO की एक स्टडी के मुताबिक, हर साल लगभग 7 लाख लोग स्ट्रोक और दिल की बीमारियों से मरते हैं, जिनका सीधा संबंध लंबे काम के घंटों और तनाव से होता है।
ये घटना सिर्फ EY के लिए नहीं, बल्कि हर कंपनी के लिए एक बड़ा अलार्म है। अपने एम्पलाइज को मशीन की तरह ट्रीट करना बंद करना होगा।
हसल कल्चर के नाम पर इस एक्सप्लॉयटेशन को अब और नॉर्मल नहीं किया जा सकता। आपकी सेहत किसी भी काम से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
अगर आप भी कभी ऐसे टॉक्सिक का शिकार हुए हैं, तो अपनी आवाज उठाइए। नीचे कॉमेंट्स में अपने अनुभव शेयर करें और इस स्टोरी को उन लोगों तक जरूर पहुंचाएं जो ऐसा माहौल झेल रहे हैं। याद रखें, आपकी हेल्थ सबसे जरूरी है, उसे नजरअंदाज मत करें।
लेख का उद्देश्य
इस लेख का मकसद हसल कल्चर के खतरों और इससे कर्मचारियों की सेहत पर पड़ने वाले बुरे असर के बारे में जागरूकता फैलाना है। उम्मीद है कि इसे पढ़कर लोग अपनी हेल्थ को प्रायोरिटी देंगे और इस तरह के शोषण के खिलाफ आवाज उठाएंगे।