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हम सभी 14 नवंबर को बाल दिवस मनाते हैं। इस दिन जवाहरलाल नेहरू का जन्म हुआ था। मगर बहुत कम लोग इस बात से वाकिफ होंगे कि इस दिन एक और प्रेरणादायक व्यक्ति का जन्म हुआ था, जिन्होंने अपना पूरा जीवन अनाथ बच्चों के लिए समर्पित कर दिया। सिंधुताई सपकाल, एक सामाजिक कार्यकर्ता व अनाथ बच्चों की मां थीं, और उन्हें ‘माई’ के रूप में याद किया जाता है।

पद्मश्री सिंधुताई को ‘अनाथांची यशोदा’ के नाम से भी जाना जाता है, जिनका जीवन कभी आसान नहीं रहा। खुद अपने जीवन में लाख मुसीबतें झेलने के बाद भी सिंधुताई ने कभी हार नहीं मानी। आज हम आपको सिंधुताई की प्रेरणादायक कहानी के बारे में बताएंगे।

कौन हैं सिंधुताई सपकाल?

सिंधुताई का जन्म 14 नवंबर, 1948 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले के पिंपरी मेघे गांव में अभिमानजी साठे के घर हुआ था, जो एक चरवाहे थे। एक अनचाही संतान होने के कारण, उनका उपनाम ‘चिन्धी’ रखा गया। उनका बचपन आसान नहीं था और उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा।

सिंधुताई सपकाल

अभिमानजी सिंधुताई को शिक्षित करने के इच्छुक थे और उन्हें मवेशी चराने के बहाने स्कूल भेजते थे, जहाँ वह स्लेट के रूप में ‘भरदी पेड़ की पत्तियों’ का उपयोग करती थीं; स्थिति इतनी ख़राब थी कि आर्थिक तंगी के कारण परिवार एक असली स्लेट भी नहीं खरीद सकता था।

उनकी शादी बारह साल की उम्र में श्रीहरि सपकाल नामक 32 वर्षीय व्यक्ति से हुई थी और उनकी एक बेटी थी। जब वह 20 साल की उम्र में चौथी बार गर्भवती हुईं तो उनके क्रोधित पति ने गर्भावस्था के नौवें महीने में सिंधुताई की पिटाई की और उन्हें एक गौशाला में कैद कर दिया। घटनाओं से आहत सिंधुताई ने एक बच्ची को जन्म दिया और कुछ दिन गौशाला में बिताए। सिंधुताई ने अपनी बच्ची ममता के साथ एक श्मशान में शरण ली।

सिंधुताई का जीवन

जीवन को आगे बढ़ाना और जीविकोपार्जन करना आवश्यक था, यदि अपने लिए नहीं तो अपनी बच्ची के लिए, ताकि वह उसे दूध पिला सकें। इसके लिए सिंधुताई ने गाय चराई और भीख माँगी। इस अनुभव ने अनाथ बच्चों की देखभाल के लिए सिंधुताई के मिशन की शुरुआत को चिह्नित किया।

इसके बाद, वह उनके लिए “माई” यानि मां बन गईं। सिंधुताई तब तक उनकी देखभाल करतीं जब तक वे बड़े होकर नौकरी नहीं कर लेते, शादी नहीं कर लेते और जीवन में बस नहीं जाते। यह उनके लिए आसान यात्रा नहीं थी, लेकिन सिंधुताई ने अमरावती के चिखलदरा में अपना पहला आश्रम स्थापित किया।

उनका पहला एनजीओ, सावित्रीबाई फुले गर्ल्स हॉस्टल, भी चिखलदरा में बनाया और पंजीकृत किया गया था। चाहे उन्हें कितनी भी कठिनाइयों से गुजरना पड़ा हो, उनके बच्चों के खुश चेहरों ने उन्हें जीवन में आगे बढ़ने में मदद की। उन्होंने एक बार उल्लेख किया था कि कैसे भूख ने उन्हें बोलने पर मजबूर कर दिया और यह उनका संचार कौशल था जो आय का प्राथमिक स्रोत बन गया। पुणे जिले में उनके संस्थान, ममता बाल सदन सासवड की अपनी इमारत है जिसमें एक कंप्यूटर कक्ष, सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए एक बड़ा हॉल, सौर प्रणाली, अध्ययन कक्ष और एक पुस्तकालय जैसी सुविधाएं हैं।

राष्ट्रपति द्वारा पद्म श्री

सिंधुताई के बारे में पहले बहुत कम लोग जानते थे, मगर 2021 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द द्वारा उनके लिए पद्म श्री की घोषणा के बाद लोगों को उनके बारे में पता चला। सिंधुताई को उनके काम के लिए पद्म श्री के साथ-साथ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार मिले हैं।

फिल्मों के लिए प्रेरणा सिंधुताई सपकाल

अनंत महादेवन द्वारा निर्देशित और 2010 में रिलीज़ हुई एक मराठी फिल्म, मी सिंधुताई सपकाल, उनके जीवन की सच्ची कहानी से प्रेरित एक बायोपिक है। फिल्म को 54वें लंदन फिल्म फेस्टिवल में वर्ल्ड प्रीमियर के लिए चुना गया था।

सिंधुताई की मृत्यु

दिल का दौरा पड़ने के बाद सिंधुताई ने 4 जनवरी, 2022 को पुणे के एक निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली। वह उस समय 74 वर्ष की थीं और अपनी बीमारी के बाद एक महीने से अधिक समय से अस्पताल में भर्ती थीं। सिंधुताई का अंतिम संस्कार पुणे के पास किया गया।

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