लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी वक्फ संशोधन विधेयक को मंजूरी मिल गई है। गुरुवार देर रात 2 बजकर 34 मिनट पर सभापति जगदीप धनखड़ ने इस विधेयक के पारित होने की घोषणा की। इस पर 14 घंटे से अधिक समय तक बहस चली, जिसमें 128 वोट विधेयक के पक्ष में और 95 वोट विरोध में पड़े। इससे पहले लोकसभा में भी 12 घंटे लंबी चर्चा के बाद 288-232 के अंतर से यह विधेयक पारित हुआ था। अब यह बिल राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा और उनकी स्वीकृति के बाद इसे कानून का रूप मिल जाएगा।
विपक्ष और मुस्लिम संगठनों का विरोध
हालांकि, इस विधेयक को लेकर संसद से लेकर सड़कों तक विवाद गहराता जा रहा है। विपक्षी दलों और मुस्लिम संगठनों ने इसका कड़ा विरोध किया है। कांग्रेस पार्टी ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की घोषणा की है। कांग्रेस महासचिव और राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर पोस्ट कर कहा कि उनकी पार्टी इस विधेयक के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ेगी। इसी तरह, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन ने भी इसकी संवैधानिकता पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट जाने की घोषणा की है।
यूपी-बिहार में बढ़ी सुरक्षा
उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में इस विधेयक को लेकर माहौल गरमाया हुआ है। यूपी में हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है। मथुरा, वाराणसी समेत 40 जिलों में पुलिस फ्लैग मार्च कर रही है और राजधानी लखनऊ में प्रमुख दरगाहों और मस्जिदों की ड्रोन से निगरानी की जा रही है। प्रशासन पूरी तरह सतर्क है ताकि कोई अप्रिय घटना न हो। वहीं, बिहार में भी इस विधेयक को लेकर सियासी भूचाल आ गया है।
जेडीयू में पड़ी दरार
राज्यसभा में जेडीयू ने मोदी सरकार का समर्थन करते हुए विधेयक के पक्ष में वोट डाला, जिससे पार्टी के भीतर विवाद खड़ा हो गया है। समर्थन से नाराज होकर जेडीयू के चार मुस्लिम नेताओं ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। इस घटनाक्रम ने बिहार की राजनीति में नया मोड़ ला दिया है।
मोदी सरकार का बचाव
विपक्ष जहां इस बिल को मुसलमानों के अधिकारों के खिलाफ बता रहा है, वहीं मोदी सरकार इसे सुधारात्मक कदम कह रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे पारदर्शिता बढ़ाने वाला विधेयक बताते हुए कहा कि यह गरीब और पसमांदा मुस्लिमों के अधिकारों की रक्षा करेगा। हालांकि, विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार ने इस बिल को जल्दबाजी में पारित किया है और इसे लेकर जनता को अधिक समय दिया जाना चाहिए था।
बसपा प्रमुख मायावती ने भी भाजपा सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने इस बिल को जल्दबाजी में पेश किया है और अगर इसका दुरुपयोग हुआ तो बसपा मुसलमानों के साथ खड़ी होगी।
सहयोगी दलों की भूमिका
विधेयक पास कराना मोदी सरकार के लिए आसान नहीं था, क्योंकि राज्यसभा में भाजपा के पास बहुमत नहीं है। ऐसे में जेडीयू, टीडीपी, आरएलडी और चिराग पासवान की एलजेपी जैसे सहयोगी दलों का समर्थन बेहद जरूरी था। चंद्रबाबू नायडू, नीतीश कुमार, चिराग पासवान और जयंत चौधरी जैसे नेताओं ने विधेयक का समर्थन करके यह संकेत दिया कि वे गठबंधन धर्म निभा रहे हैं, भले ही उनके वोटबैंक पर इसका असर पड़े।
मुस्लिम संगठनों ने बीजेपी के सहयोगी दलों पर भारी दबाव बनाया। यहां तक कि रमजान के महीने में उनकी इफ्तार पार्टियों का बहिष्कार तक कर दिया गया। बिहार और आंध्र प्रदेश में बड़े स्तर पर जनसभाएं आयोजित कर दबाव बनाने की कोशिश की गई, लेकिन इसके बावजूद इन दलों ने अपना रुख नहीं बदला और मोदी सरकार का साथ दिया।
आगे क्या?
इस पूरे घटनाक्रम से स्पष्ट हो गया है कि भाजपा भले ही राज्यसभा में बहुमत से दूर हो, लेकिन अपने सहयोगी दलों के समर्थन से अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में सफल रही है। इस विधेयक को पास कराकर मोदी सरकार ने न केवल अपने आलोचकों को जवाब दिया है, बल्कि यह भी साबित कर दिया है कि गठबंधन सरकार को भी मजबूती से चलाया जा सकता है।
अब सवाल यह है कि इस विधेयक को सुप्रीम कोर्ट में किस तरह चुनौती दी जाती है और आगे की राजनीति किस दिशा में जाती है। लेकिन फिलहाल, यह विधेयक देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है।