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भारत में बुधवार को एक बड़ा आंदोलन देखने को मिलेगा। इस दिन देशभर में भारत बंद (Bharat Bandh) का आह्वान किया गया है, जिसमें 25 करोड़ से ज्यादा मज़दूर और कर्मचारी अपनी नौकरी छोड़कर हड़ताल पर जाएंगे। खास बात ये है कि इस हड़ताल को किसानों और ग्रामीण मजदूरों का भी पूरा समर्थन मिल रहा है।

क्यों हो रहा है ये भारत बंद?

इस बंद को 10 बड़े केंद्रीय मज़दूर संगठनों ने मिलकर बुलाया है। इनका आरोप है कि सरकार की नीतियां मज़दूरों और किसानों के खिलाफ हैं, जबकि बड़े-बड़े कॉरपोरेट घरानों के फेवर में हैं।
हड़ताल का असर बैंक, बीमा, कोयला खदान, डाकघर, पब्लिक ट्रांसपोर्ट, फैक्ट्रियों और असंगठित क्षेत्र तक पड़ेगा। इससे कई ज़रूरी सेवाएं एक दिन के लिए ठप हो सकती हैं।

क्या हैं मज़दूरों की माँगें?

मज़दूर यूनियन पिछले कई महीनों से इस बंद की तैयारी कर रही थीं। उन्होंने सरकार को 17 सूत्रीय माँगों की लिस्ट दी थी, जिनमें शामिल हैं:
• सभी को न्यूनतम वेतन मिले
• पेंशन और सामाजिक सुरक्षा दी जाए
• ठेका और कैज़ुअल जॉब बंद हों
• जरूरी चीजें सस्ती मिलें
• किसानों के हक की गारंटी हो
लेकिन यूनियन नेताओं का कहना है कि सरकार ने इन माँगों पर कोई जवाब नहीं दिया।

लेबर कोड सबसे बड़ा विवाद

सबसे बड़ा विरोध चार नए लेबर कोड्स (Labour Codes) को लेकर है। मज़दूरों का कहना है कि अगर ये कानून लागू होते हैं, तो—
• काम के घंटे बढ़ेंगे
• नौकरी की सुरक्षा घटेगी
• हड़ताल और यूनियन बनाने का हक भी कमजोर होगा
उनका ये भी आरोप है कि सरकार सरकारी कंपनियों को बंद कर रही है और उनकी जगह प्राइवेट कंपनियों को काम दे रही है। इससे पक्की नौकरियों की जगह ठेके की नौकरियां बढ़ रही हैं।

किसानों का साथ

इस हड़ताल को किसान संगठनों का पूरा समर्थन मिला है। वो गांवों में रैलियां, पंचायत मीटिंग और धरने करेंगे।
मज़दूर और किसान पहले भी मिलकर आंदोलन कर चुके हैं, और इस बार भी साथ हैं क्योंकि दोनों मानते हैं कि सरकार की नीतियां आम लोगों के लिए नहीं, अमीर कंपनियों के लिए हैं।

पश्चिम बंगाल में सख्ती

पश्चिम बंगाल सरकार ने चेतावनी दी है कि अगर कोई बंद के नाम पर सेवाओं में रुकावट डालेगा, तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इससे टकराव की संभावना भी बन रही है।

क्यों ज़रूरी बन गई है ये हड़ताल?
यह बंद ऐसे समय पर हो रहा है जब देश में महंगाई, नौकरी की टेंशन, और कम सैलरी जैसी समस्याएं हर घर तक पहुंच गई हैं। खासकर प्राइवेट सेक्टर और अनपक्की नौकरियों में काम करने वालों के लिए यह विरोध एक ज़रूरी आवाज़ बन चुका है।

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