पाकिस्तान और सऊदी अरब ने बुधवार को एक ऐतिहासिक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसे कई विशेषज्ञ नाटो जैसी संधि की तरह देख रहे हैं। इस समझौते के तहत अगर किसी एक देश पर हमला होता है, तो उसे दोनों देशों पर हमला माना जाएगा। यानी युद्ध या आक्रमण की स्थिति में दोनों देश एक-दूसरे की रक्षा के लिए खड़े होंगे।
रियाद में हुए इस समझौते पर सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने दस्तखत किए। इस “स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट” को नाटो के आर्टिकल 5 जैसी शर्तों के समान माना जा रहा है, जिसमें एक देश पर हमला सबपर हमला माना जाता है।
पाकिस्तान के परमाणु हथियार का पहलू
इस डील का सबसे बड़ा पहलू यह है कि पाकिस्तान के परमाणु हथियार अब सऊदी अरब की रक्षा व्यवस्था से भी जुड़ गए हैं। समझौते के तहत जरूरत पड़ने पर पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को सऊदी अरब की सुरक्षा के लिए इस्तेमाल करने की अनुमति होगी। इससे यह गठबंधन और भी गंभीर और रणनीतिक बन गया है।
भारत की नजर
भारत ने इस समझौते को गंभीरता से लिया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत पहले से इस विकास से अवगत था और अब इसके राष्ट्रीय सुरक्षा, क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता पर पड़ने वाले असर का अध्ययन करेगा। साथ ही उन्होंने साफ किया कि भारत अपनी सुरक्षा और हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
पाकिस्तान इस समझौते को अपने लिए सुरक्षा कवच की तरह देख रहा है। भारत के अलावा पाकिस्तान को इजरायल से भी हमले का खतरा महसूस होता है। ऐसे में उसने “इस्लामिक भाईचारे” का हवाला देकर सऊदी अरब को अपने पक्ष में किया है।
हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन और तुर्की से मिले हथियारों की विफलता ने पाकिस्तान को झटका दिया था। अब पाकिस्तान खाड़ी देशों में अपने रिश्ते मजबूत कर भविष्य की जंग के लिए बैकअप तैयार कर रहा है।
भारत के लिए चुनौती
भारत के लिए यह समझौता सामरिक दृष्टि से अहम है। पाकिस्तान और सऊदी अरब की इस नज़दीकी से भारत की मध्य-पूर्व नीति और सुरक्षा संतुलन पर असर पड़ सकता है। खासकर तब, जब पाकिस्तान के परमाणु हथियार अप्रत्यक्ष रूप से खाड़ी क्षेत्र की सुरक्षा ढांचे में शामिल हो जाएं।