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दिल्ली विधानसभा चुनाव 2024 के नतीजे आ चुके हैं और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (AAP) सत्ता से बाहर हो चुकी है। जिस पार्टी ने 2015 में 67 सीटें जीतकर इतिहास रचा था, वह अब संघर्ष करती नजर आ रही है। आखिर ऐसा क्या हुआ कि AAP की मजबूत पकड़ ढीली पड़ गई? आइए जानते हैं इस हार के प्रमुख कारण।

भ्रष्टाचार के आरोप बने सबसे बड़ा कारण

      AAP भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए बनी थी, लेकिन 10 साल बाद उसी पार्टी के नेताओं पर घोटाले के आरोप लगे। शराब नीति घोटाले में अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह को जेल जाना पड़ा। इसके अलावा, कैग रिपोर्ट में भी AAP पर गड़बड़ी के आरोप लगे। बीजेपी ने इस मुद्दे को चुनाव में जमकर उछाला और जनता ने AAP से दूरी बना ली।

      फ्री सुविधाओं की रणनीति फेल हुई

        केजरीवाल की राजनीति का आधार रहा है – फ्री बिजली, फ्री पानी, फ्री बस यात्रा। लेकिन इस बार जनता इस झांसे में नहीं आई। बीजेपी ने 12 लाख तक इनकम टैक्स फ्री करने का ऐलान कर दिया, जिससे केजरीवाल का “फ्री गेम” कमजोर पड़ गया।

        मुस्लिम और दलित वोट बैंक में सेंध

          पिछले चुनावों में AAP को मुस्लिम और दलित इलाकों से जबरदस्त समर्थन मिला था। लेकिन इस बार जब मुस्लिम समाज पर संकट आया, AAP खुलकर बोलने से बचती रही। इससे इन इलाकों में भी AAP को झटका लगा और कांग्रेस व AIMIM को फायदा हुआ।

          अधूरे वादे बने मुसीबत

            AAP ने एमसीडी चुनाव जीतने के बाद दिल्ली की सड़कों को सुधारने और साफ पानी देने का वादा किया था। लेकिन हकीकत में ये वादे अधूरे रह गए। जब AAP ने इन्हें दोबारा दोहराया, जनता ने गंभीरता से नहीं लिया।

            कांग्रेस और AIMIM ने बिगाड़ा खेल

              इस चुनाव में कांग्रेस ने अपने वोट शेयर में बढ़ोतरी कर ली, जिससे AAP को कई सीटों पर नुकसान हुआ। ओवैसी की पार्टी AIMIM ने भी AAP के वोट बैंक में सेंध लगा दी, जिससे पार्टी को करारी शिकस्त मिली।

              शीशमहल विवाद ने किया नुकसान

                केजरीवाल पर करोड़ों रुपये के आलीशान सरकारी आवास (शीशमहल) के निर्माण का आरोप लगा। बीजेपी ने इस मुद्दे को जमकर उछाला और जनता में यह धारणा बनी कि जो नेता खुद को आम आदमी कहता था, वह अब शाही जिंदगी जी रहा है। इससे AAP की विश्वसनीयता कमजोर हुई।

                मुख्यमंत्री पद पर असमंजस

                  अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से सशर्त जमानत मिली थी, जिसका मतलब था कि वे मुख्यमंत्री पद नहीं संभाल सकते। बीजेपी और कांग्रेस ने जनता को यह समझाने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि अगर AAP जीत भी जाती, तो भी केजरीवाल मुख्यमंत्री नहीं बन सकते।

                  अब आगे क्या?

                  दिल्ली की राजनीति में इस हार के बाद आम आदमी पार्टी के लिए आगे का सफर मुश्किल हो सकता है। सवाल यह है कि क्या AAP दोबारा वापसी कर पाएगी? क्या केजरीवाल की राजनीति का भविष्य सुरक्षित है? या फिर दिल्ली की राजनीति का नक्शा पूरी तरह बदल चुका है? आने वाला समय ही इन सवालों के जवाब देगा।

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