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दिल्ली विश्वविद्यालय में मनुस्मृति और बाबरनामा को हिस्ट्री ऑनर्स के पाठ्यक्रम में जोड़ने की खबर से बड़ा बवाल मच गया। जैसे ही ये प्रस्ताव सामने आया, छात्रों और शिक्षकों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। यह बदलाव चार वर्षीय अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम के सातवें सेमेस्टर के लिए किया जाना था, लेकिन इसकी घोषणा होते ही यूनिवर्सिटी में हलचल तेज हो गई।

छात्रों और शिक्षकों के एक वर्ग ने इस प्रस्ताव को आपत्तिजनक बताया और इसे तुरंत हटाने की मांग की। उनका कहना था कि ऐसे ग्रंथों को पढ़ाने से अनावश्यक विवाद खड़ा होगा और पढ़ाई के असली उद्देश्य से ध्यान भटक जाएगा। कुछ छात्रों ने इसे एकतरफा विचारधारा थोपने की कोशिश बताया, जबकि कुछ का कहना था कि इतिहास की सही समझ के लिए हर तरह के ग्रंथों का अध्ययन जरूरी होता है। लेकिन जैसे-जैसे विरोध बढ़ा, मामला गर्माने लगा।

विरोध को बढ़ता देख, आखिरकार दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रशासन को सामने आना पड़ा! प्रशासन ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “ना हम बाबरनामा पढ़ाएंगे और ना ही मनुस्मृति! अभी तक ऐसा कोई प्रस्ताव हमारे पास नहीं आया है और इसे एकेडमिक काउंसिल (AC) और एक्जीक्यूटिव काउंसिल (EC) में पास नहीं किया जाएगा।” प्रशासन ने साफ कर दिया कि विश्वविद्यालय ऐसे विवादों में नहीं पड़ना चाहता और अगर कोई शिक्षक जबरन ऐसे बदलाव लागू करने की कोशिश करेगा, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।

दरअसल, मनुस्मृति को हिंदू धर्म की प्राचीनतम कानून संहिता माना जाता है, लेकिन इस पर जाति व्यवस्था को बढ़ावा देने और महिलाओं के अधिकारों को सीमित करने के आरोप लगते रहे हैं। कई समाज सुधारकों, खासकर डॉ. भीमराव अंबेडकर, ने इस ग्रंथ की कड़ी आलोचना की थी और यहां तक कि उन्होंने 1927 में इसकी प्रतियां जलाकर इसका विरोध किया था। यही कारण है कि कई छात्र और शिक्षक इसे आज के आधुनिक शिक्षा प्रणाली का हिस्सा बनाए जाने का विरोध कर रहे हैं।
वहीं, बाबरनामा भारत पर आक्रमण करने वाले मुगल शासक बाबर की आत्मकथा है। इसमें बाबर के भारत पर कब्जे, युद्धों और शासन के बारे में विस्तार से लिखा गया है। लेकिन विवाद ये है कि बाबर को कई लोग आक्रमणकारी मानते हैं, जिसने भारत पर हमला किया और कई मंदिरों को ध्वस्त किया। खासतौर पर अयोध्या में विवादित स्थल से बाबर का नाम जुड़ा रहा है, जिससे कई संगठनों ने इसे पाठ्यक्रम में शामिल करने का विरोध किया। विरोध करने वालों का कहना है कि ऐसे ग्रंथों को पढ़ाने से विवादित इतिहास को हवा मिलेगी, जो समाज को तोड़ने का काम कर सकता है।

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