
राजनीति में फैसले हमेशा फायदे और नुकसान के तराजू पर तौले जाते हैं, और बीते कुछ दिनों में ऐसा ही कुछ INDIA गठबंधन के अंदर देखने को मिला है। हरियाणा से लेकर उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र तक, एक के बाद एक घटनाओं ने संकेत दिए हैं कि गठबंधन में शह-मात का खेल शुरू हो चुका है।
INDIA गठबंधन में शह और मात का खेल

सबसे पहले हरियाणा में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी (सपा) को एक भी सीट देने से इनकार कर दिया। कांग्रेस के इस फैसले ने अखिलेश यादव को मायूस किया, लेकिन उन्होंने सार्वजनिक रूप से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और कांग्रेस का समर्थन जारी रखा।
हालांकि, हरियाणा में गठबंधन के इस झटके का बदला अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश उपचुनाव में ले लिया। यूपी की 9 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में कांग्रेस ने सपा से गाजियाबाद, खैर, मीरापुर, फूलपुर और मंझवा सीटों की मांग की थी। शुरुआत में लगा कि सपा इन मांगों को आसानी से मान लेगी, लेकिन अखिलेश यादव ने राजनीतिक दांव खेलते हुए मीरापुर और फूलपुर से मुस्लिम प्रत्याशी उतार दिए, जिससे समीकरण बदल गए। गाजियाबाद और खैर में बीजेपी की मजबूत स्थिति को देखते हुए कांग्रेस ने खुद ही चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया और अब उसे सिर्फ सपा का समर्थन करना पड़ रहा है। इस कदम से अखिलेश ने साफ संदेश दिया कि हरियाणा में जिस तरह कांग्रेस ने उन्हें निराश किया था, अब वह भी यूपी में कांग्रेस को उसी अंदाज में जवाब देंगे।
क्या टूट की आहट सुनाई दे रही है?

महाराष्ट्र में भी गठबंधन में तनातनी जारी है। महाविकास अघाड़ी गठबंधन में शामिल सपा ने 12 सीटों की मांग की है, लेकिन चर्चा में उसे केवल 4 सीटें देने की बात हो रही है। इस पर दबाव बनाने के लिए सपा ने अंतिम फैसले से पहले ही 5 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी, जिनमें धुले शहर, मालेगांव सेंट्रल, मनखुर्द-शिवाजी नगर और भिवंडी पश्चिम शामिल हैं। सपा के महाराष्ट्र अध्यक्ष अबू आजमी ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मुलाकात कर इस फैसले की जानकारी दी, जिससे गठबंधन के अंदर बेचैनी बढ़ गई है। छोटे दलों में नाराजगी बढ़ती जा रही है, क्योंकि उन्हें पर्याप्त सीटें नहीं मिल रही हैं, और अब सभी की नजरें इस पर टिकी हैं कि क्या महाविकास अघाड़ी गठबंधन चुनावी मैदान में एकजुट होकर उतर पाएगा।
दूसरी ओर, आम आदमी पार्टी (AAP) ने हरियाणा में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला कर विपक्षी एकता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। AAP ने 90 में से 89 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उसे एक भी सीट पर जीत नहीं मिली। यह कांग्रेस के लिए एक झटका था, क्योंकि इससे यह संकेत गया कि INDIA गठबंधन वैचारिक रूप से कमजोर है और जमीनी स्तर पर एकजुट नहीं दिख रहा। अब सभी की निगाहें महाराष्ट्र पर हैं, जहां यह देखना दिलचस्प होगा कि AAP को गठबंधन में कितनी सीटें मिलती हैं और क्या वह अकेले चुनाव लड़ने का जोखिम उठाती है या नहीं।
क्या INDIA गठबंधन सीट बंटवारे के मतभेद सुलझा पाएगा?

झारखंड में भी INDIA गठबंधन के बीच तनाव उभरकर सामने आया। जेएमएम और आरजेडी के बीच सीट बंटवारे को लेकर खींचतान चल रही थी, लेकिन लालू यादव ने हस्तक्षेप कर मामला सुलझा लिया। उनके दखल के बाद हेमंत सोरेन ने आरजेडी को 6 सीटें देने पर सहमति जताई, और दोनों पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया। उधर झारखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस राज्य में 30 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
NDA में भी उथल-पुथल जारी है, क्योंकि कई नेताओं को टिकट नहीं मिला, और वे अब जेएमएम में शामिल होने लगे हैं। हाल ही में तीन पूर्व विधायकों समेत कई बीजेपी नेताओं ने जेएमएम का दामन थाम लिया, जिससे NDA के भीतर संकट गहरा गया है। सीट बंटवारे और गठबंधन की नाजुक स्थिति ने साफ कर दिया है कि 2024 के चुनावों से पहले न केवल INDIA गठबंधन, बल्कि NDA में भी असंतोष पनप रहा है।
क्या गठबंधन की ये दरारें चुनावी मैदान में असर डालेंगी?

INDIA गठबंधन के भीतर इन घटनाओं से यह स्पष्ट हो गया है कि भले ही विपक्षी दलों ने एकजुट होकर बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोला है, लेकिन आंतरिक खींचतान और सीट बंटवारे को लेकर तनाव गठबंधन को कमजोर कर सकता है। हरियाणा से लेकर उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र तक, हर घटना ने यह दिखाया है कि हर दल अपने हितों को सर्वोपरि रख रहा है। अब देखना यह होगा कि क्या ये दरारें चुनावी मैदान में गठबंधन की ताकत को प्रभावित करेंगी, या फिर ये दल चुनाव से पहले मतभेद भुलाकर बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा बना पाएंगे।