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आज के समय में कुछ अस्पताल ऐसे हो गए हैं जिन्हें इंसान की जान से ज्यादा पैसे की परवाह है। मरीज़ की मौत के बाद भी अगर बिल नहीं भरा गया हो, तो शव को बंधक बना लिया जाता है। परिवार के लोग रोते रह जाते हैं, लेकिन अस्पताल शव नहीं सौंपता — ये कहकर कि पहले बिल भरो।

क्या यही इंसानियत है?
क्या पैसा जान से बड़ा हो गया है?
कभी-कभी तो लगता है कि कुछ अस्पताल अब इलाज नहीं, बिज़नेस कर रहे हैं।

ऐसी ही अमानवीय हरकतों पर अब असम सरकार ने सख्त कदम उठाया है।
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा की अगुवाई में हुई कैबिनेट बैठक में फैसला लिया गया कि अब कोई भी निजी अस्पताल या नर्सिंग होम, बकाया बिल के नाम पर शव को 4 घंटे से ज्यादा नहीं रोक सकता।

1 अगस्त 2025 से ये नियम पूरे असम में लागू होगा।
अगर कोई अस्पताल ऐसा करता है, तो परिजन तुरंत 104 पर कॉल कर सकते हैं या स्थानीय पुलिस को सूचित कर सकते हैं। पुलिस आकर शव दिलवाएगी।

सरकार ने साफ कहा है —
“शव को बिल की गारंटी नहीं माना जाएगा। भुगतान बाद में भी हो सकता है, लेकिन शव रोकना अपराध होगा।”
और अगर कोई अस्पताल इस नियम का उल्लंघन करता है, तो उसे ये सज़ा दी जाएगी:
3 से 6 महीने तक लाइसेंस निलंबन
₹5 लाख तक जुर्माना
बार-बार गलती करने पर अस्पताल हमेशा के लिए बंद

यह फैसला उन लाचार और गरीब परिवारों के लिए राहत बनकर आया है जो पैसे की कमी के चलते अपने परिजन का अंतिम दर्शन तक नहीं कर पाते।
ये कदम सिर्फ एक सरकारी आदेश नहीं, बल्कि उन अस्पतालों के लिए एक चेतावनी है जो इंसान की मौत के बाद भी पैसे वसूलने का धंधा चलाते हैं।
अब वक्त आ गया है कि अस्पतालों को ये समझ में आए —
इंसान की जान और मौत को व्यापार का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता।
पैसा जरूरी है, लेकिन इंसानियत उससे कहीं ज्यादा जरूरी है।

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