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हमारे देश में त्योहारों का रंग हर कोने में अलग है। कहीं मकर संक्रांति की पतंगबाजी, कहीं लोहड़ी का गिद्दा, कहीं बिहू का नाच तो कहीं पोंगल की मिठास। ये त्योहार हमारी एकता और विविधता की पहचान हैं। साथ ही, यह समय है जब हम अपने किसानों का धन्यवाद करते हैं, जो हमारे लिए अनाज उगाते हैं।

त्योहारों का पुराना अंदाज

पहले जब त्योहार आते थे, तो पूरा घर उनकी तैयारियों में जुट जाता था। माएं, दादियां, और बहनें मिलकर तिल के लड्डू, गुड़ की मिठाई, चिक्की और पीठा बनाती थीं। इन चीजों की खुशबू से त्योहारों का एहसास होने लगता था। पिताजी और बड़े भाई बाजार से ताज़ी सब्जियां और सामान लाते थे। बच्चे पतंगों और मांझे के लिए मचल जाते थे। पूरे मोहल्ले के बच्चे मिलकर पतंग उड़ाते और त्योहारों का मजा लेते थे।

आज का समय और बदलती परंपराएं

आजकल त्योहारों का रंग थोड़ा फीका हो गया है। अब लोग ऑनलाइन चीजें खरीदकर त्योहार मना लेते हैं। मिठाई भी घर में नहीं बनती, बल्कि बाजार से लाते हैं। बच्चे भी पतंग उड़ाने की बजाय फोन और टीवी में व्यस्त रहते हैं। रिश्तेदारों के घर जाना तो जैसे अब भूल ही गए हैं।

क्या हमें यह बदलना चाहिए?

त्योहार सिर्फ एक दिन का सेलिब्रेशन नहीं हैं। ये हमारी परंपराओं, परिवार और खुशी से जुड़े होते हैं। अगर हम बच्चों को क्रिसमस और हैलोवीन के बारे में सिखा सकते हैं, तो क्या अपने त्योहारों की कहानियां और परंपराएं नहीं बता सकते?

आओ, त्योहारों का असली मज़ा लें

हम सबको चाहिए कि त्योहारों को फिर से उसी पुराने अंदाज में मनाएं। घर की मिठाई बनाएं, बच्चों को अपनी परंपराओं से जोड़ें और रिश्तेदारों के साथ समय बिताएं। त्योहारों का असली मज़ा तभी है जब सब साथ मिलकर खुशी मनाएं।

तो इस बार मकर संक्रांति, लोहड़ी, बिहू या पोंगल में, बस एक मैसेज भेजकर न रुकें। घर की मिठाई बनाएं, पतंग उड़ाएं, और अपने परिवार के साथ इस दिन को यादगार बनाएं। क्योंकि त्योहारों का असली मतलब है – साथ में रहकर खुशी बांटना!

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