हरियाली तीज महिलाओं के लिए बेहद खास दिन होता है। हर साल सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली या हरतालिका तीज मनाई जाती है। इस दिन सुहागिनें निर्जला व्रत रखती हैं और 16 श्रृंगार कर भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा करती हैं। इस व्रत से सुहागिनों को सदा सौभाग्यवती रहने का वरदान मिलता है। पति की लंबी आयु और परिवार की खुशहाली के लिए इस व्रत का बहुत महत्व माना गया है।
तीज की पूजा और रिवाज
शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए शिव जी और मां पार्वती की आराधना करती हैं। व्रत रखकर वे प्रकृति और हरियाली की भी पूजा करती हैं। इस दिन हरे रंग के वस्त्र, चूड़ियां पहनकर महिलाएं सखियों के साथ झूला झूलती हैं और पारंपरिक गाने गाकर एक-दूसरे को बधाइयां देती हैं।
हरियाली तीज का महत्व
सावन के महीने में आने वाले हरियाली तीज के त्योहार का बहुत महत्व माना जाता है। भारत में पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान में यह त्योहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
सिंधारा का महत्व
हरियाली तीज के दिन शादीशुदा महिलाओं के घर मायके से सिंधारा भेजा जाता है, जिसे कुछ इलाकों में सिंजारा भी कहा जाता है। सिंधारे में बेटी के कपड़े, श्रृंगार की चीजें और कुछ मीठा होता है। इस दिन लड़कियां अपने मायके जाती हैं और उनके लिए विशेष प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं।
हरियाली तीज की कथा
हरियाली तीज को श्रावणी तीज भी कहते हैं। इस दिन देवों के देव महादेव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए 107 जन्मों तक तप किया था। भगवान भोलेनाथ माता पार्वती के कठिन तप से प्रसन्न हुए और 108वें जन्म में उनसे विवाह किया। इसी कारण हरियाली तीज का दिन सुहागिनों और कुंवारी कन्याओं के लिए बहुत खास होता है। इस व्रत को करने से स्त्रियों को मनोवांछित फल मिलता है।
हरियाली तीज का त्योहार महिलाओं के जीवन में खुशियां और सौभाग्य लाता है। इस त्योहार को सभी महिलाएं बड़े ही उत्साह और प्रेम के साथ मनाती हैं, और यह दिन उनके जीवन में नई उमंग और आशा का संचार करता है।